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ने प्रयागमा उतारे पथी हनमान जी ने युध्या मुखलेऔर हनमान जी जब भरत जी को कहने के बाद आएबादमे प्रभु, पहला एक दिवस आगर भगवान जोई गयामुखले प्रभु, पहला एक दिवस आगर भगवान जोई गयावदला नी एक वडवाय पकड़ी और चित्रकूत ना प्रांगण माभगवान नी स्थिती नु शब्द चित्रगो स्वामी जी लिखते हैतन मन वचन, उमाग यनु रागातन मन वचन, उमाग यनु रागामन मा थी, तन मा थी, वचन मा थी, अनु राग वही रहा हैतन मन वचन, उमाग यनु रागातन मन वचन, दा धीर धुरं, धर धीर ज त्यागाधर धीर धुरं, धर धीर ज त्यागाबगवान धीरज गुमावी बहत, चवको देख रहे हैंहजारओनी संख्या मा लोको ये विदाय लिदीभरत समाज और जनक समाज ज्या सुधी देखातो रहोजनक सुधी प्रभु बारेहान ज्यारे बदूज देखातो बन थयोत्यारे निराश वदने चित्रकुट ना आश्रम मा जयीरामायन मा लख्यू से, त्रणी जणा विल खाये हैकोई कोई नी साथे वात करतू नहीपरमात्मा नी भरत वियोग मा देशा जयी चित्रकुट ना भीलो रडी पढ़ाआ बाजु रस्ता मा उतारव करता, पेलू करता करता, भगवान नु समर्ण करता करताराम जी नी उदारता, लक्ष्मन जी नो त्याग, सिता जी नी सहनसिलतामहत्मा वो नो परमार्थ, चित्रकुट नु सामिप्य नु सूख, अने भीलो नो निखालस भावआ बद्धाने रटन करता करता, चोथे दिवसे भरत जनक, अयोध्या पहुँचेमहराज एक प्रार्थना है, आपने जारे जारे अवकास मलेना, त्यारे अयोध्या आवी, बरत शत्रुगननी सम्भान देते, बन्ने नु ध्यान राखता रहेजनक ना नेत्र मा असु आवी, देवि आप मत चिंता करी, जाओ महराज, जनक सुनैना जनक समाज विदाय लेजे, अयोध्या एकली थाई गए, पशिष्ट जीने पूझी, पूछी शुबदीन शोधी, भगवान नी चरण पादुका, गाधी उपर पदरावीशरी भरत जी ये पादुका, ने शासन सुप्रत करीजे,नित पूजत प्रभु पावरी, पादुका नु नित्य पूजन करे,पादुका ने पूछी पूछी नराम कारीय करे,पर हजी संत ना रदई ने कही तूट्तु देखाई,प्रेमी ने त्याग मां हमेशा यू लागचे,कि हजी वो चूचे, यू प्रेमी ने लागचे,एक दिवश संध्याने समये,संतो कहे, भरत जी एकला वशिष्ट जी ना आश्रम मां गया छे,बाब जी ने पगे लागी ने बैठा,भरत जी पूछे, भरत जी शमचे भाई,क्यों, अत्यारे, अचानक,कही बोली शक्ता नथी,बोलो, भरत जी,कही बाब जी एक रदई नी वात कहा आयो छ,बाब जी, आप मारी वात बराबर स्विकार शो,बोले, बोलिये,गुरुदेव, मने भगवान ना वियोग मा आयो ध्या मा दंतू रथे,भरत, एक एम चाले,अत्ला बदा जो तमें कायर बनो,तो आयो ध्या नु शु थसे,बाब जी, उम भागी जवानी वात नथी करतो,पण बाब जी, एक वस्तु मने सतावेश शु,मारो इश्वर जो जंगल मा रहे,तो उम राज भवन मा केम रही शु,बाब जी, ये धरती उपर सुवे,शेन खण्ड मा केम सुवे शु,बाब जी, ये फलफूल खाए,और फलफूल पण रुतू है, तयरे मले,मुझे युध्या नु भोजन केम करी शु,बाब जी, सचु कहु,कवसल्या आगरह करे ने,इतले मारे जम्मू पडे,करण कि उम नजमू तो,इवे दा भुख्या रहे,इतले मारा ती सहं थाई,एपरा ने सामे बेसिन,जमाडे छे,इतले बाब जी,उम जमू छु, पण सत्य कहु,कवसल्या मान आगरह ने वश्च थईन,जमू छु, कवसल्या मान मकु,बाब जी,मने मारो भुख्यो लक्षमन सामओ देखाई,सहन थतु नदी बाब,तो शो इचच,बाब जी, तमे आगन आपो तो,नन्दी गरम मा नवास करू, भागी नही जाओ,नन्दी गरम मा कुकय करिं,नन्दी गरम मा नवास करू, वलकल पएरू,उदासी न वरत लहू, रोज पादुका ने पुजा करिं,आपनी सेवा करिं, माताओनी सेवा करिं, परजानु पालन करिं,राज कारय करिं, पण रहू उदासी न नदि गरमू,आ वकते वशिष्ट जी चुप थे गय, धन्य बरजी,बरजी अमे धर्मनी वयक्ख्या करे चे,बरजी तमे धर्मनु परनाम चो, धन्य वहू,तमे धरम सार चो,मु आपने एतलू चकहीश बरजी,कवसल्या मा मन्जूरी आपे,यह तमारा तरप थी मन्जूरी,कवसल्या नु रदई दुभाव सो, तो भकती सफल ने थाए,बले, भले परभू, मा ने उं समझा विदईश,बरत जी बाप जी ने पासल ते विदईश थय,आगय कवसल्या ना भवन मा,मे आगल संदरभ मा कयू छय आप ने,कवसल्या जी राम दु योग प्छी,यने अवधेश ना आवसान प्छी,बस राम जी ना ओरडा ने बाजू माज,बरत जी आवि ने मा पां से बेसी गया,सुकाई गयू से शरीर कवसल्या जी,मत उपर मा हत फेर रेस,बरत, बेटे,हा मा, शुं से,बरत, जी रोडे लगे,बेटा, बार बार रोना क्या ठीक है,जा, मा ना पालव मा मुगठा कईरी,बरत, जी रडे,बताओ ना,सभी कठे हुगे,बरत, शु, मा,मु जानो चु,कतने नही गमे,तने दुख थरशे,समझि ले, मारो जनम जत तने दुख आपा माटे तो थयव,फीरी वही बात,एक नी एक बात दोहराओ नही, बरत,बरत,मा तु आगना आपे तो,मँ नंधी गराम जाओ,बीक लगी छे पोचदा,वलकल पेरी नंधी गराम मा निवास करू मा,मा उँ वचन आपो शु, भागी नहीं जाओ,रोज तरी पासे आविश, मा मारू वचन,सेवा करीश, तरी पासे मैसीश, मा,तने छोडीन क्या जाओ,पण रहू नंदि गरा,पादुका नी पुजा करीश,राज्य नु कारिय करीश,पण मा राम वन मा रहे,तो आयोध्या मा नहीं जीविश,कवसल्य आजी रडी पड़ा है,उख मा थी शब्द निकली गयो बेटे,अज आतलू बाकी होै,तो एपन पुरू करू,बरत एक परश्न पुछू,अज आयोध्याने आवु कटलू जुवानु बाकी है,मा एवं नहीं बोल,तु दुखी थाई तो हुँ नहीं जाम,मु तने नराज करवा नथी,मा जो तु मने राजी खोशी थी मनजरी आपीश,तो उम इतलो खुश थाईश,खुश थाईश मा,रदई ना टुकड़े टुकड़ा थाई गया कवसल्या जी,पण, मैं आगल पण आपने कहु,के कवसल्या जी समजय है,के गमय तेम तो ये भरत मारा कुळ नव संत है,अपने इच्छा मा इच्छा भेडवी,एमा संसारीयो नु कल्यान है,सजल नेत्र मा एं कहई दिदू बेटा,ननदी ग्राम मा तपस्वी जीवन जीववा थी,तने जो खरे खर परसनता रहती होई,तो जाओ बेटे ननदी ग्राम,कवसल्याय मन्जुरी आपी है,भरत ने मा भेटी पड़ी है,आयुध्या मा खबर मली गई लोगों ने,भरत जी भेक पहरे है,आकि आयुध्या जमा थय,औने राम वनवास वक्ते,अवधपती ना अवसान वक्ते,लोगों ने आगात नोतो थेो,इतलो आगात,भरत जी वलकल धारन करिया,जटा बांधे,वलकल पहरे, आहत मा कमणडल ने,तव सेवको ने सुचणा आपए छे,भरत जी नंदी ग्राम ने यात्रा नो आरम्द करवाना से,माताओ ने परणाम दे,कवसल्या जी कहने बोली शकता नथे,समायन मा लख्यू नथी, पण एम विचार आवे,कहजे अयोध्या मा वधारे मह वधारे दया जनक पात्र कौन है?अयोध्या मा वधारे मह दया जनक पात्र कौन है?शत्रुग्ना,कवसल्या जी ये जोयू,शत्रुग्ना ना आथ पक्डियू बेटे,मोटा कुलु मा जनमिये तो बहुत सहन करूँ पड़े,सूरत जो तप्तो होई, आपडो बाप जो सलत्तो होई,तो एनी संतानो शीतरता कैम प्राप्त करी शके,तुम तो सुर्य वंशी हो बेटे,शत्रुग्न बोले तो नही,माना पालव मा मुग धांकी,आज बहुत रोई,माना उसके आसुने शिकायत की,प्रश्ट किया,तो तो एक परत्यूतर मने आप,माना शत्रुग्न का माउन बोल रहा,अनते एक,ये बे भाईयों,भगवती सिताजी वन मा,मारा पिताजी स्वर्ग मा,अने अवे वरत भया नंदी ग्राम जाये,मा मने इतलू तो बताओ,अवे हूं क्या जाओ,मारे क्या जाओ,वरतने,जता जोई शत्रुग्ननो जे भाव से,आगात से ते बताओ,मा समझावेश शत्रुग्न,आकि एयोध्या भरत जी ने वडावा निकली सर,याग ने प्रेम नु गवरी शनकर शिखर छे,सरी भरत जी निकल गये,सब देख ते रह गये,नंदी ग्राम आया,परनकूटी बनावी,धर्वनी पथारी तैयार करी,भरत जी ये विचार करेओ,कि भगवान जो धर्ती उपर सुता होई,तो माराती धर्ती उपर ना सुआए,इतलिए धर्ती मां खाडो करो,खाडा मां दर्भासन राखे,